Saturday, January 28, 2017

गवाही.. वक्त खुद दे देगा gavahi vakt khud de dega

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Shanu Alam

*अगर आप सही हो..*
*तो कुछ भी साबित करने की*
*कोशिश मत करो..*
*बस सही बने रहो...*
*गवाही.. वक्त खुद दे देगा!*

Wednesday, January 11, 2017

ख़ूबसूरत लोग


कुछ लोग कम ख़ूबसूरत लोगों से नफ़रत ऐसे करते हैं..
जैसे उन्होंने अपने आपको ऑर्डर देकर बनवाया था...

Sunday, January 8, 2017

लड़ने के बहाने पहले से तय ह iiैं, ladne ke bahane pehle se tai hain


लड़ने के बहाने पहले से तय हैं,
जन्म लेते ही मुझे हिन्दू, मुसलमान , या फलाना या ढिकाना बना दिया गया,
जन्म लेने से पहले ही मेरे दुश्मन भी तय कर दिए गये,
जन्म से पहले ही मेरी ज़ात भी तय कर दी गयी,
यह भी मेरे जन्म से पहले ही तय कर दिया गया था कि, 
मुझे किन बातों पर गर्व और किन पर शर्म महसूस करनी है,
अब एक अच्छा नागरिक होने के लिये,
मेरा कुछ को दुश्मन मानना और एक अनचाहे गर्व से भरे रहना
आवश्यक है,
यह घृणा और यह गर्व
मेरे पुरखों ने जमा किया है
पिछले दस हज़ार सालों में,
और मैं अभिशप्त हूँ इस दस हज़ार साल के बोझ को अपने सिर पर ढोने के लिये,
और अब मैं सौंपूंगा यह बोझ अपने
मासूम और भोले बच्चों को,
अपने बच्चों को मैं सिखाऊंगा,
नकली नफरत , नकली गर्व ,
थमाऊंगा उन्हें एक झंडा,
नफरत करना सिखाऊंगा,
दुसरे झंडों से,
अपने बच्चों की पसंदगियाँ भी मैं तय कर दूंगा,
जैसे मेरी पसंदगियाँ तय कर दी गयी थीं,
मेरे जन्म से पहले ही,
कि मैं किन महापुरुषों को अपना आदर्श मान सकता हूँ,
और किनको नहीं,
किस संगीत को पसंद करना है हमारे धर्म को मानने वालों को,
और कौन से रंग शुभ हैं,
 और कौन से रंग दरअसल विधर्मियों के होते हैं ?
लगता है अभी भी कबीले में जी रहा हूँ मैं,
लड़ना विरोधी कबीलों से
परम्परागत रूप से तय है,
शिकार का इलाका और खाना इकठ्ठा करने का इलाका,
अब राष्ट्र में तब्दील हो गया है,
दुसरे कबीलों से इस इलाके पर कब्ज़े के लिये लड़ने के लिये,
बनाए गये लड़ाके सैनिक
अब मेरी राष्ट्रीय सेना कहलाती है,
मुझे गर्व करना है इस सेना पर,
जिससे बचाए जा सकें हमारे शिकार के इलाके,
पड़ोस के भूखे से लड़ना अपने शिकार के इलाके के लिये
अब राष्ट्र रक्षा कहलाती है,
लड़ने के बहाने पहले से तय हैं,
पड़ोसी का धर्म ,
उसका अलग झंडा,
उनकी अलग भाषा,
सब घृणास्पद हैं,
हमारे पड़ोसी हीन और क्रूर हैं,
 इसलिए हमारी सेना को उनका वध कर देने का,
पूर्ण अधिकार है,
दस हज़ार साल की सारी घृणा,
सारी पीड़ा,
मैं तुम्हें दे जाऊंगा मेरे बच्चों,
पर मैं भीतर से चाहूंगा,
मेरे बच्चों,
तुम अवहेलना कर दो मेरी,
मेरी किसी शिक्षा को ना सुनो,
ना ही मानो कोई सडा गला मूल्य जो मैं तुम्हें देना चाहूँ
धर्म और संस्कृति के नाम पर,
तुम ठुकरा दो,
मैं चाहूँगा मेरे बच्चों,
कि तुम अपनी ताज़ी और साफ़ आँखों से इस दुनिया को देखो,
देख पाओ कि कोई वजह ही नहीं है,
किसी को गैर मानने की,
ना लड़ने की की कोई वजह है,
शायद तुम बना पाओ एक ऐसी दुनिया,
जिसमे सेना , हथियार , युद्ध , जेल नहीं होगी,
जिसमे इंसानों द्वारा बनायी गयी भूख गरीबी और नफरत नहीं होगी,
जिसमे इंसान अतीत में नहीं
वर्तमान में जियेगा,

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